मप्र सरकार नपा और पीएचई को एसटीपी के लिए मुहैया कराएं 9.28 करोड़ रुपये-हाई कोर्ट ने सीवर ट्रीटमेंट प्लांट तैयार कराने के संबंध में दिए शासन को निर्देश

Nikk Pandit
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सागर शर्मा शिवपुरी:खबर शहर के प्राकृतिक सौंदर्य का केंद्र होने के साथ-साथ वर्ष 2022 में रामसर साइट में शामिल की गई, 3.9 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली की ऐतिहासिक चांदपाठा झील अब विभिन्न विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर हो गई है। पूरी झील को जलकुंभी ने अपनी चपेट में ले लिया है। इसे लेकर शहर के कई युवा वकील कानूनी लड़ाई लड़ने में लगे हुए हैं। इसी क्रम में एडवोकेट निपुण सक्सेना ने इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ में एक याचिका दायर की है। हाई कोर्ट ने माना है कि इस ऐतिहासिक झील में जलकुंभी विभिन्न विभागों की लापरवाही के कारण फैली है। पिछली तारीख पर हाई कोर्ट ने ईई पीएचई, सीसीएफ, ईई सिंचाई विभाग सहित नपा सीएमओ को 5 अगस्त 2025 को कोर्ट में पेश होने का आदेश सुनाया था। इसी आदेश के क्रम में 5 अगस्त को पीएचई की ईई आरएल मौर्य, वाटर सिसोर्स डवलपमेंटके चीफ इंजीनियर एसके वर्मा, नपा के एई व प्रभारी सीएमओ सचिन चौहान, माधव टाइगर रिजर्व के रेंजर वृंदावन यादव तारीख पर हाई कोर्ट पहुंचे। हाई कोर्ट ने जब सीवर की लाइन, ट्रंक लाइन से न जोड़े जाने और घर-घर में सीवर कनेक्शन न दिए जाने के संबंध में सवाल किया तो नपा ने पीएचई पर व पीएचई ने नपा पर दोषारोपण किया। नपा का कहना था कि मैन टाइन को ट्रंक लाइन से जोड़ने की जिम्मेदारी कान्ट्रेक्ट के अनुसार पीएचई की है। वही पीएचई का कहना था कि हर घर को सीवर का कनेक्शन देने की जिम्मेदारी नपा की है। अंत में पीएचई के ईई ने हाई कोर्ट से कहा कि शासन ने उन्हें अभी तक 9.28 करोड़ रुपये की राशि मुहैया नहीं कराई है। इस कारण सीवर लाइन, ट्रंक लाइन से नहीं जुड़ पाई है। हाई कोर्ट ने शासन को निर्देश दिए हैं कि पीएचई और नपा को उक्त राशि इस शर्त पर उपलब्ध करवाए कि इस राशि का उपयोग सीवर प्रोजेक्ट में ही किया जाएगा। इसके अलावा हाई कोर्ट ने सीसीएफ की उपस्थित न होने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि अगली तारीख पर 25 अगस्त को माधव नेशनल पार्क के सीसीएफ यहां पर खड़े मिलने चाहिए। 

जैविक तरीके से किया जा सकता है झील का ट्रीटमेंटझील में जलकुंभी के ट्रीटमेंट को लेकर पीटीशन दायर करने वाले एडवोकेट निपुण सक्सेना का कहना था कि झील में चूंकि हजारों की संख्या में जलीय जीव हैं। इसके पानी को मवेशी व जंगली जानवर पीते हैं, इसके अलावा इससे शहर में भी पेयजल सप्लाई होता है, इसलिए झील का केमिकल ट्रीटमेंट करना संभव नहीं है। इसके अलावा जो मशीनें जल कुंभी हटाने के लिए झील में लगाई गई हैं उनकी हटाने की क्षमता और जलकुंभी के बढ़ने की क्षमता में कई गुना अंतर है। ऐसे में अगर झील का जैविक ट्रीटमेंट किया जा सका है। इसके झील में कुछ ऐसे कीड़े छोड़े जा सकते हैं जो जलकुंभी की जड़ों सहित उसके तने व पत्तों को भी खा जाते हैं। इससे जलकुंभी दोबारा से उत्पन्न नहीं होती है। इस दिशा में डायरेक्ट्रेट आफ वीड रिचर्स इंस्टीट्यूट जबलपुर ने काम किया है।
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