शिवपुरी जिले की कोलारस रेंज से वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करने वाला मामला सामने आया है। जहां रेत से भरे तीन ट्रैक्टर-ट्रॉली को वन कर्मियों ने पकड़ा, लेकिन बाद में बिना माइनिंग विभाग को सूचना दिए ही छोड़ दिया गया। रेंजर का कहना है कि ट्रॉली में मिट्टी थी, जबकि वीडियो में साफ रेत नजर आ रही है।
कोलारस विधानसभा क्षेत्र में अवैध रेत खनन लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। गुरुवार रात एक बार फिर यह मुद्दा तब गरमा गया जब पचावली-रन्नौद रोड से कोपरा बासुआ की ओर जा रही तीन ट्रैक्टर ट्रॉलियों को कोलारस रेंज के वनकर्मियों ने रेत से भरा होने के संदेह में रोक लिया और उन्हें रेंज ऑफिस में खड़ा कर लिया गया।
मामले की गंभीरता तब बढ़ गई जब इन ट्रैक्टर ट्रॉलियों को रात में ही छोड़ दिया गया। रेंजर गोपाल जाटव ने सफाई देते हुए कहा कि ट्रॉली में रेत नहीं बल्कि मिट्टी भरी हुई थी, जिसे ग्रामीण अपनी निजी जमीन से लाए थे। दस्तावेजों का सत्यापन किया गया और ट्रॉली उस स्थान से नहीं पकड़ी गई जो वन क्षेत्र में आता हो। उनका कहना है कि रात में संदेह के आधार पर वाहनों को रोका गया था और जांच के बाद छोड़ दिया गया।
हालांकि, इस मामले में एक वीडियो भी वायरल हुआ है जिसमें ट्रॉली में स्पष्ट रूप से रेत भरी हुई दिखाई दे रही है। इससे वन विभाग की भूमिका संदेह के घेरे में आ गई है। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि यदि मामला रेत से जुड़ा था, तो इसकी जानकारी खनिज विभाग को क्यों नहीं दी गई?
खनिज विभाग के निरीक्षक सोनू श्रीवास का कहना है कि यदि रेत से जुड़ा कोई मामला आता है तो विभाग को जानकारी देना जरूरी होता है। लेकिन इस मामले की कोई सूचना उन्हें नहीं दी गई। यह विभागीय प्रक्रिया थी करनी चाहिए थी।
रेत माफियाओं की पकड़ बरकरार -
कोलारस विधानसभा में रेत माफियाओं की राजनीतिक पकड़ पहले भी सामने आ चुकी है। हाल ही में माइनिंग विभाग के निरीक्षक को धमकाकर रेत माफियाओं ने अपने वाहन छुड़ा लिए थे। अब वन विभाग द्वारा की गई इस कार्रवाई और फिर उससे पलटी बयानबाजी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या प्रशासनिक अमला रेत माफियाओं के दबाव में काम कर रहा है।