सागर शर्मा शिवपुरी:MP के शिवपुरी की सर्किल जेल अब 'जैकेट वाली जेल' के नाम से पहचान बना रही है। यहां, सजा काट रहे बंदी न केवल अपने अपराधों का प्रायश्चित कर रहे हैं, बल्कि हुनर भी सीख रहे हैं। जेल में बंदियों द्वारा बनाई गई जैकेटें प्रदेश की 123 जेलों में सप्लाई की जाती हैं, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिलता है।
यहां कई बंदी अपनी सजा के दौरान न सिर्फ जैकेट निर्माण बल्कि कई तरह की कलाओं को सीख रहे हैं। बंदी हर महीने 24 दिन काम करते हैं। उन्हें मिलने वाली राशि कैंटीन खर्च, न्यायालय प्रक्रिया और परिवार की मदद में आती है।
2023 में रखी गई थी सिलाई यूनिट की नींव
शिवपुरी सर्किल जेल अधीक्षक रमेश चंद्र आर्य बताते हैं कि वर्ष 2023 में डीजी अरविंद कुमार ने सर्किल जेल का निरीक्षण किया था। उसी दौरान यह चर्चा हुई कि बंदियों को ऐसा कार्य उपलब्ध कराया जाए जिससे उन्हें कोई हुनर मिले और उनका समय सही तरीके से कटे और वे आर्थिक रूप से भी सक्षम बन सकें।
इस विचार के बाद जिला विधिक प्राधिकरण और जेल विभाग की स्वीकृति से कुछ सिलाई मशीनें लाई गईं और अप्रैल 2023 से जैकेट निर्माण की शुरुआत की गई। शुरुआती चरण में यह एक छोटा प्रयास था, लेकिन आज यह पूरे राज्य के लिए मिसाल बन चुका है।
व्यापारियों की मदद से आगे बढ़ा यह प्रयास
जेल अधीक्षक रमेश चंद्र आर्य बताते हैं कि शुरुआत में विभाग द्वारा केवल कुछ ही मशीनें उपलब्ध कराई जा सकी थीं। लेकिन बंदियों में कुशल कारीगर नहीं थे। तभी 2023 में तत्कालीन कलेक्टर अक्षय कुमार और एसपी राजेश सिंह चंदेल शिवपुरी सर्किल जेल पहुंचे।
उन्होंने इस प्रयास को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया। इसके बाद बदरवास के मशहूर जैकेट कारोबारी रमेश चंद्र अग्रवाल ने अपने कुशल कारीगरों के माध्यम से बंदियों को सिलाई का प्रशिक्षण दिलाया।
इस अवसर पर रमेश अग्रवाल ने प्रशिक्षण के दौरान बंदियों से कहा- आप सिलाई का हुनर सीखें, जेल से रिहा होने के बाद मैं आपको रोजगार दूंगा। इसके बाद 34 बंदियों ने सिलाई की ट्रेनिंग पूरी की।
पहले पंजाब से आता था मटेरियल, अब विभाग निकालता है निविदा
शुरुआत में जैकेट बनाने का रॉ मटेरियल बदरवास से खरीदा जाता था। लेकिन जब खपत बढ़ी तो इसे पंजाब से मंगवाना पड़ा। अब स्थिति ऐसी है कि जेल विभाग जैकेट सामग्री के लिए स्वयं निविदा जारी करता है। इससे मटेरियल की गुणवत्ता और उपलब्धता नियमित बनी रहती है।
123 जेलों में होती है जैकेट की सप्लाई
शिवपुरी सर्किल जेल से अब पूरे मध्यप्रदेश की 123 जेलों में हाफ और फुल दोनों प्रकार की जैकेटें भेजी जाती हैं। इन 123 जेलों में 11 केंद्रीय जेल, 40 जिला जेल, और बाकी उप जेलें शामिल हैं।
प्रदेश में शिवपुरी और रतलाम ही दो ऐसी जेलें हैं, जिन्हें सर्किल जेल की श्रेणी प्राप्त है। शिवपुरी सर्किल जेल के अंतर्गत गुना, शिवपुरी, अशोकनगर और श्योपुर जिले आते हैं। यहां 10 साल तक की सजा वाले बंदियों को रखा जाता है। आजीवन कारावास पाए बंदियों को केंद्रीय जेल भेजा जाता है, हालांकि कुशल कारीगर होने पर विशेष अनुमति से उनमें से कुछ को यहां रखा गया है।
जेल विभाग को आधे दाम में जैकेट
जेल अधीक्षक के अनुसार, पहले एक जैकेट विभाग को 800 से 900 रुपए में खरीदनी पड़ती थी। खादी भंडार से भी सालों तक प्रति जैकेट 900 रुपए की दर से खरीदारी होती रही। लेकिन शिवपुरी जेल में जैकेट निर्माण शुरू होने के बाद अब एक जैकेट की लागत 400-450 रुपए है। इससे विभाग का अतिरिक्त खर्च बच रहा है और बंदियों को हुनर व रोजगार मिल रहा है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
जेल विभाग को आधे दाम में जैकेट
जेल अधीक्षक के अनुसार, पहले एक जैकेट विभाग को 800 से 900 रुपए में खरीदनी पड़ती थी। खादी भंडार से भी सालों तक प्रति जैकेट 900 रुपए की दर से खरीदारी होती रही। लेकिन शिवपुरी जेल में जैकेट निर्माण शुरू होने के बाद अब एक जैकेट की लागत 400-450 रुपए है। इससे विभाग का अतिरिक्त खर्च बच रहा है और बंदियों को हुनर व रोजगार मिल रहा है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
जेल अधीक्षक बताते हैं कि जेल विभाग में एक जैकेट की अधिकतम मियाद 3 साल निर्धारित है। एमपी की विभिन्न जेलों में करीब 21 हजार सजा याफ़्ता बंदी हैं। इसलिए हर साल हजारों जैकेटों की मांग आती रहेगी और यह काम लगातार चलता रहेगा।
बंदियों द्वारा जैकेट के अलावा फेब्रिकेशन और एलईडी बलब भी बनाए जाते हैं।
कारपेंटिंग और फेब्रिकेशन यूनिट
शिवपुरी जेल में फेब्रिकेशन और एलईडी यूनिट भी संचालित हैं। फेब्रिकेशन यूनिट में लगभग 6 बंदी कार्यरत हैं। एलईडी यूनिट में बंदियों को बल्ब असेंबलिंग का प्रशिक्षण दिया गया है, जहाँ 9 वाट के बल्ब ₹92 में तैयार होते हैं, जबकि बाजार में इनकी कीमत ₹154 है। इसी तरह, ₹350 में मिलने वाले 12 वाट के रिचार्जेबल बल्ब यहाँ ₹190 में बनाए जाते हैं।
इन बल्बों का उपयोग शिवपुरी, गुना, अशोकनगर और श्योपुर जेलों में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, यहाँ पंखों, पानी की मोटरों की बाइंडिंग और हाईमास्ट रिपेयरिंग का कार्य भी बंदियों द्वारा किया जाता है। जेल में कुल 428 बंदी हैं, जिनमें 27 महिला बंदी और 2 किन्नर बंदी शामिल हैं।
बंदी बोले-जेल अधीक्षक ने मदद की
राजेश कुशवाह (बदरवास) -- "तीन साल से जैकेट बना रहा हूं। बदरवास के कारीगरों से ट्रेनिंग ली थी। मन से काम करता हूं।"
दिलशाद खान – “चार माह से जैकेट बना रहा हूं। बैरिक में बैठकर तनाव बढ़ता था, अब दिनभर काम से मन लगा रहता है। रोज 5 घंटे काम करता हूं।"
भारत गुर्जर- "तीन माह से काम सीख रहा हूं। जेल अधीक्षक ने बहुत मदद की।"
राजू रजक- “तीन साल हो गए जेल में। दो साल से जैकेट सिलाई कर रहा हूं। पहले कुछ नहीं आता था, अब कुशल कारीगर बन चुका हूं।"